Jivan Bina - 8 book and story is written by Anangpal Singh Bhadoria in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Jivan Bina - 8 is also popular in Poems in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
जीवन वीणा - 8
Anangpal Singh Bhadoria
द्वारा
हिंदी कविता
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विवरण
पिंजड़ा तोड़ न पाया पंछी, आजादी का स्वप्न अधूरा ।उड़ना चाहा मुक्त गगन में, पर मंसूबा हुआ न पूरा ।।नहीं पता कितने जन्मों से,इस पिंजड़े में बंद जवानी ।वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी ।।उड़ने की उन्मुक्त गगन में, यद्यपि रही कल्पना मेरी ।विषय वासना,लालच,डर की,लगी रही अनचाही ढेरी।।रहा सिसकता बस पिंजड़े में,बाहर निकल न पाया प्रानी।वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी ।।आया एक खयाल एक दिन,युक्ति करूं बाहर जाने की।कीन्ही परमेश्वर से विनती,अपना पिंजड़ा खुलवाने की।।परमेश्वर ने मेरी सुनली,बालक ने करदी नादानी ।वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने
वीणा घर में रखी पुरानी , लेकिन नहीं बजाना आया । सारा घर उस पर चिल्लाया,जिस बच्चे ने हाथ लगाया।। जीवन वीणा के तारों की रीति -नीति नहिं हमने जानी । वीणा...
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