इस कहानी में कुछ अंग्रेज शिकारी भारत के एक जंगल में शिकार करने जाते हैं, जहाँ उन्हें एक पुराने डाक बंगले में रुकना पड़ता है। उस डाक बंगले का रखवाला अपनी पत्नी और 14-15 साल की बेटी के साथ रहता है। एक रात, नशे में धुत शिकारी रखवाले और उसके परिवार की हत्या कर देते हैं और उनकी लाशें डाक बंगले के पीछे दफना देते हैं। कुछ समय बाद, कैलाश नाम का नया सेवक उस डाक बंगले में आता है। एक रात, कैलाश को दरवाजे पर रोने की आवाज सुनाई देती है। दरवाजा खोलने पर उसे एक किशोरी रोती हुई मिलती है, जो बताती है कि वह पहले सेवक की बेटी है और अपने परिवार की हत्या के बारे में बताती है। कैलाश उसका सामना कर डरता है, लेकिन किशोरी उसे आश्वस्त करती है। वह उसे बताती है कि उसके परिवार को कहाँ दफनाया गया था। कैलाश वहाँ जाकर उनकी लाशें निकालता है और किशोरी से वादा करता है कि वह शिकारीयों के खिलाफ न्याय की लड़ाई लड़ेगा। लेकिन किशोरी उसे बताती है कि उसे बदला खुद लेना है और कैलाश से थोड़ी मदद मांगती है।
मानो या ना मानो
Vanrajsinh Zala द्वारा हिंदी लघुकथा
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मानो या ना मानो
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