Do Ajnabi aur wo aawaz book and story is written by Pallavi Saxena in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Do Ajnabi aur wo aawaz is also popular in सामाजिक कहानियां in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
दो अजनबी और वो आवाज़ - उपन्यास
Pallavi Saxena
द्वारा
हिंदी सामाजिक कहानियां
दो अजनबी और वो आवाज़ जीवन में जब आपके किसी अपने की कोई परेशानी आपके सर चढ़कर बोलती है तो क्या होता है ? जाहीर सी बात है मन परेशान हो उठता है और दिलो दिमाग के बीच एक जंग सी छिडी होती है। दोनों में से कोई भी एक दूसरे का साथ नहीं देता। ऐसे हालात में आपके दिमाग में कुछ ऑर चल रहा होता है और आप का शरीर कुछ और कर रहा होता है (कुछ ऐसा जिसको करने के लिए आपको दिमाग की जरूरत नहीं होती) ठीक वैसा ही इस कहानी की नायिका के साथ भी हो
दो अजनबी और वो आवाज़ जीवन में जब आपके किसी अपने की कोई परेशानी आपके सर चढ़कर बोलती है तो क्या होता है ? जाहीर सी बात है मन परेशान हो उठता है और दिलो दिमाग के बीच एक ...और पढ़ेसी छिडी होती है। दोनों में से कोई भी एक दूसरे का साथ नहीं देता। ऐसे हालात में आपके दिमाग में कुछ ऑर चल रहा होता है और आप का शरीर कुछ और कर रहा होता है (कुछ ऐसा जिसको करने के लिए आपको दिमाग की जरूरत नहीं होती) ठीक वैसा ही इस कहानी की नायिका के साथ भी हो
दो अजनबी और वो आवाज़ भाग-2 क्यूँ, ऐसा क्यूँ लगता था तुम्हें क्यूंकि....जाने दो फिर कभी, फिर समय के साथ-साथ मेरा आकर्षण बदलने लगा और तुम जैसे समय के साथ–साथ मेरी जिंदगी से कहीं गुम होती चली गयी। अब ...और पढ़ेभी ज़िंदगी लगभग बदल चुकी थी और जैसा के लड़कों के साथ अक्सर होता है। उम्र के साथ कुछ गलत आदतें साथ लग जाती है। मुझे भी उन दिनों नशे की आदत लग चुकी थी। जब भी कभी मुझे खाली समय मिलता। मैं अपने दोस्तों के साथ बैठकर दारू पी लिया करता। यह शौक इस कदर बढ़ा कि मेरी पहली
दो अजनबी और वो आवाज़ भाग-3 इसके पहले मैं कुछ और सोच पाती, वह आवाज मेरे निकट आकर मुझसे कहती है तुम यहाँ बैठो और मेरा इंतज़ार करो। जब हमारी कॉफी तैयार हो जाएगी तो यह भैया तुम्हारा नाम ...और पढ़ेतुमसे खुद कॉफी ले जाने को कहेंगे। मैं अभी आता हूँ। मैं वहाँ बैठकर अपनी नर्वसनेस को छिपाने का निरर्थक प्रयास करते हुए आस पास के माहौल का जायजा लेने लगती हूँ। वो फिर मेरे पास आकर पूछता है कॉफी आ गयी क्या ? मैं ज़रा गुस्से से उससे कहती हूँ कम से कम आज तो मेरे सामने आकर बैठो,
दो अजनबी और वो आवाज़ भाग-4 गाड़ी का वाइपर ज़ोर-ज़ोर से अपने आप चल रहा है। बाहर बारिश अपने चरम पर बरस रही है। चुभने वाली खामोशी से डरकर मैं पसीना पसीना हो रही हूँ। आस-पास भी कुछ दिखायी ...और पढ़ेदे रहा है। गाड़ी भी लॉक है। मुझे ऐसा लग रहा है, मानो मुझे कोई अगवा करके अपने साथ लेजा रहा है। तभी तो उसने मुझे गाड़ी में कैद कर दिया है। न कोई आवाज है, न किसी तरह का कोई शोर है। सिर्फ गाड़ी के वाइपर के चलने की आवाज आरोही है। जैसे रात के सन्नाटे में घड़ी की
दो अजनबी और वो आवाज़ भाग-5 जैसे मैं किसी अंधेरे कमरे में बंद हूँ, जहां चाहकर भी मैं कुछ देख नहीं पा रही हूँ। अंधेरा इतना घना है कि हाथ को हाथ की सुध नहीं, मानो जैसे मैं सच ...और पढ़ेअंधी हो गयी हूँ। आती हुई आवाज़ें मुझे परेशान कर रही हैं। मैं बेचैनी से छटपटा रही हूँ। सुनो तुम कौन हो...? मैं अब भी नहीं जान पायी हूँ। लेकिन अभी इस वक़्त तुम्हारी आवाज मुझे डरा रही है। मुझे यहाँ से बाहर निकालो प्लीज....नहीं तो मैं मर जाऊँगी। मैं देख क्यूँ नहीं पा रही हूँ। क्या मैं सच में