Saheb Saayraana book and story is written by Prabodh Kumar Govil in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Saheb Saayraana is also popular in फिक्शन कहानी in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
साहेब सायराना - उपन्यास
Prabodh Kumar Govil
द्वारा
हिंदी फिक्शन कहानी
कहते हैं कि अपनी जवानी में हर कोई ख़ूबसूरत होता है। जवानी इंसान की ज़िन्दगी में एक बार आने वाला वो मौसम है जो जिस्म के पोर- पोर को फूल की तरह खिलाकर एक शोख चटक के तड़के से खुशबूदार बनाता है। लड़का हो या लड़की जवानी तो जवानी है। झूम कर आती है। हर बदन पर आती है।
लेकिन अपने ही बनाए इस फलसफे पर कुदरत को कभी भरोसा नहीं हुआ। आख़िर इसमें इंसाफ़ कहां है? आदमी को कई बरस में फ़ैला हुआ एक लंबा जीवन मिले और इसमें जवानी का मौसम सिर्फ़ एक बार आए??
अतः कुदरत ने मनुष्य को दो हिस्सों में बांट दिया। एक "सूरत" और दूसरी "सीरत"।
अब ठीक है। सूरत पर चाहे जवानी का जलवा बस एक बार आयेगा किंतु सीरत की युवावस्था इंसान के ख़ुद अपने ही हाथ में रहेगी। आदमी चाहे तो वो अस्सी साल की उम्र में भी जवान बना रहे, और न चाहे तो सोलह साल की उम्र में ही बूढ़ा हो जाए।
ये कहानी एक ऐसे ही शख़्स की है जिसने अपनी तमाम ज़िन्दगी जवानी में ही गुज़ारी। लगभग एक शताब्दी का लंबा भरा- पूरा जीवन देखा मगर अपनी फितरत अंत तक ताज़ादम बनाए रखी। आयु के निन्यानबेवें साल में जब दुनिया से जाने की घड़ी आई तो हर शख़्स ने यही कहा- अरे, चले गए? अभी तो और रहना था!
कहते हैं कि अपनी जवानी में हर कोई ख़ूबसूरत होता है। जवानी इंसान की ज़िन्दगी में एक बार आने वाला वो मौसम है जो जिस्म के पोर- पोर को फूल की तरह खिलाकर एक शोख चटक के तड़के से ...और पढ़ेबनाता है। लड़का हो या लड़की जवानी तो जवानी है। झूम कर आती है। हर बदन पर आती है। लेकिन अपने ही बनाए इस फलसफे पर कुदरत को कभी भरोसा नहीं हुआ। आख़िर इसमें इंसाफ़ कहां है? आदमी को कई बरस में फ़ैला हुआ एक लंबा जीवन मिले और इसमें जवानी का मौसम सिर्फ़ एक बार आए?? अतः कुदरत ने
दिलीप कुमार की शूटिंग देखने की इस ख्वाहिश के उजागर होते समय टीन एज में कदम रखती बेटी की आंखों की चमक ने नसीम बानो को भीतर से कहीं गुदगुदा दिया। उन्हें वो दिन याद आ गए जब उन्हें ...और पढ़ेएक फ़िल्म की शूटिंग देखते हुए ही फ़िल्मों में काम करने का चस्का लगा था। मां नसीम बानो के दिमाग़ में एक नई हलचल शुरू हो गई। क्या बेटी की ये ख्वाहिश आम बच्चों की तरह इम्तहान से फारिग होकर फ़िल्म देखने या शूटिंग देखने जैसी आम ख्वाहिश है या फ़िर कहीं भीतर ही भीतर बेटी के दिमाग़ में मां
दुआ सलाम के बाद नसीम बानो ने जब दिलीप कुमार को बताया कि बिटिया ने लंदन में ही मुझसे तुम्हारी फ़िल्म की शूटिंग दिखाने का प्रॉमिस ले लिया था तो वो खिलखिला पड़े। जब उन्होंने सुना कि सायरा ने ...और पढ़ेख़त्म होने के एवज में गिफ्ट के तौर पर दिलीप कुमार की शूटिंग देखने की इच्छा जताई है तो मानो उनका खून बढ़ गया। वह झटपट पलटे और उन्होंने ड्राइवर को अपनी कार वापस पार्किंग में लगा देने का आदेश दिया। आनन- फानन में भीतर वहां तीन कुर्सियां लगा दी गईं जहां मधुबाला और निगार सुल्ताना के बीच कव्वाली का
एक कहावत है- घर की मुर्गी, दाल बराबर! अर्थात जब तक बच्चे अपने माता- पिता के साथ रहते हैं तब तक न तो बड़े उनकी कद्र करते हैं और न ही वे अपने बड़ों की। बच्चों को अनुशासन के ...और पढ़ेमिलते रहते हैं और बड़ों को उनकी अनदेखी की बेपरवाही। लेकिन जब वही बच्चे बाहर चले जाते हैं तो उनकी हर छोटी - बड़ी मांग को तवज्जो मिलने लगती है। वो भी मां- बाप का मोल समझने लगते हैं। देश के विभाजन के बाद सायरा बानो के पिता पाकिस्तान में जा बसे और ख़ुद बेटी पढ़ने के लिए लंदन में
मानव मन भी विचित्र है और मानव तन भी! हर इंसान वही ढूंढता है जो न मिले। उन्नीस सौ चौवालीस में जन्म लेने वाली सायरा ने बचपन से ही अपने पिता को मिस किया क्योंकि वह हिंदुस्तान छोड़ कर ...और पढ़ेजा बसे थे। जबकि उनकी मां हिंदुस्तान में ही थीं। उनके पिता भी फ़िल्मों से ही जुड़े थे। यहां तक कि एक बार उनके माता - पिता ने मिल कर एक फ़िल्म निर्माण कंपनी भी बनाई थी। पर शायद उन्हें इस उपलब्धि में आनंद नहीं आया। वो चले गए। यह एक सर्वमान्य तथ्य है कि बहुत कामयाब या होनहार लड़कियों