Hudson tat ka aira gaira book and story is written by Prabodh Kumar Govil in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Hudson tat ka aira gaira is also popular in फिक्शन कहानी in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
हडसन तट का ऐरा गैरा - उपन्यास
Prabodh Kumar Govil
द्वारा
हिंदी फिक्शन कहानी
हडसन नदी की सबसे बड़ी खूबी यह थी कि यह अत्यंत तेज़ वेग से बहती थी। और तो और, इसे मौसम के साथ बदलना भी खूब आता था। जाड़ों के मौसम में जब तेज़ हिमपात होता तो यहां ठंडे पानी में बर्फ़ की बड़ी बड़ी सिल्लियां बहती हुई देखी जाती थीं। गर्मियों में तो कहना ही क्या? पानी पर थिरकती सूर्य की किरणें देखने वालों की आंखें खुशी से आंज देतीं। देखने वाले भी कोई यूं ही नहीं थे। इनमें शामिल थे एक से बढ़ कर एक दुनिया के करामाती प्राणी जो दुनिया से दो कदम आगे चलते थे। ऐसे
हडसन नदी की सबसे बड़ी खूबी यह थी कि यह अत्यंत तेज़ वेग से बहती थी। और तो और, इसे मौसम के साथ बदलना भी खूब आता था। जाड़ों के मौसम में जब तेज़ हिमपात होता तो यहां ठंडे ...और पढ़ेमें बर्फ़ की बड़ी बड़ी सिल्लियां बहती हुई देखी जाती थीं। गर्मियों में तो कहना ही क्या? पानी पर थिरकती सूर्य की किरणें देखने वालों की आंखें खुशी से आंज देतीं। देखने वाले भी कोई यूं ही नहीं थे। इनमें शामिल थे एक से बढ़ कर एक दुनिया के करामाती प्राणी जो दुनिया से दो कदम आगे चलते थे। ऐसे
ये बहुत अच्छा था कि रॉकी हडसन नदी से थोड़ी सी दूरी पर बनी एक छोटी सी कंदरा में रहता था। क्योंकि नदी इतनी तेज़ी से बहती थी कि उसके किनारे रह पाना बहुत ही मुश्किल था। अब कोई ...और पढ़ेतेज़ धारा के समीप आखिर कब तक रह सकता है? कभी तो थकान के कारण ध्यान चूकेगा ही। और बस, ऐसे में लहरें उसे बहा कर ले जाएंगी तथा न जाने कहां का कहां लेजाकर पटकेंगी। कोई सोच सकता है कि पानी की लहरों से रॉकी को कैसा भय? वह तो खुद एक उम्दा तैराक है! लेकिन कहा जाता है
रॉकी एक सुबह घास पर बैठा धूप सेक रहा था। क्या करता, ठंड ही इतनी थी। रात में तो थोड़ी सी पानी की बूंदें भी गिरी थीं। पानी उसके लिए कोई नई चीज़ नहीं था, वह तो रहता ही ...और पढ़ेके किनारे था। लेकिन ये पानी जो आसमान से गिरता था न, इसकी सिफत कुछ अलग ही थी। ये बदन को तो भिगोता ही था साथ में आसपास की हवा को भी ठंडा कर देता था। बस, सर्दी बढ़ जाती। तभी रॉकी ने कोई आवाज सुनी। बिल्कुल उसकी जैसी ही आवाज। वह सिर उठा कर इधर- उधर देखने लगा। सामने
ऐश की वो प्रवासिनी मां कई शामों के ढलते अंधेरे अपने जोड़ीदार उस मेहमान के साथ गुजार कर आख़िर एक दिन घनी घास के उस कटोरेनुमा ठंडे गड्ढे में बैठ गई। मेहमान कुछ दिन तो दूर बैठा जब- तब ...और पढ़ेटुकुर - टुकुर देखता रहा फिर उससे दूर हो गया। मां के पास अब अपने अंडे सेने का नया काम जो आ गया था। वह ख़ाली कहां थी।हां, उसका पेट अलबत्ता ज़रूर खाली हो गया जब दो प्यारे से गोल - मटोल अंडे उसके जिस्म से निकल कर सुनहरी घास के बीच बने उस छोटे से गड्ढे में आ गए।सर्दियां
एक बात तो है ऐश, हम चाहे दिन भर कितना भी पानी में तैरते रहें पर जो मज़ा झरने के नीचे नहाने में आता है उसकी तो बात ही कुछ और है। रॉकी ने झरने की धार के नीचे ...और पढ़ेको झटकते हुए कहा। ऐश ने सिर हिला कर हामी भरी। लेकिन उसके चेहरे से उदासी अब भी झलक रही थी। वह बोली - आ रॉकी, अब हम थोड़ी देर आंखें बंद करके उन मछलियों और मेरे भाई को याद करें जिन्हें वह बूढ़ा खाने के लिए ले गया। - तुझे क्या मालूम कि वो उन्हें खाने के लिए ही