श्री यशपाल जी महाराज (परम पूज्य भाई साहब जी)

श्री यशपाल जी महाराज (परम पूज्य भाई साहब जी) মাতরুবার্তি যাচাই করা হয়েছে

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আপনার সম্পর্কে

परम सन्त महात्मा श्री यशपाल जी महाराज का जन्म गुरुवार, 5 दिसम्बर, 1918 को बुलन्दशहर (उ॰प्र॰)में हुआ। आपके पिता श्री सोहन लाल जी बुलन्दशहर जजी कचहरी में मुन्सरिम (प्रधान मुन्शी) थे। आपकी शिक्षा बुलन्दशहर एवं इलाहाबाद में हुई। शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात्‌ आप पोस्ट व टेलीग्राफ विभाग में टेलीग्राफिस्ट के पद पर नियुक्त हुए। नौकरी के साथ-साथ आप आई॰ई॰टी॰ई॰ (Institute of Electronics and Telecommunication Engineers) करके निरन्तर उन्नति करते-करते IETE के फैलो (Fellow) होकर पी. एण्ड टी. डिपार्टमेंट (P&T Department) के टेलीकम्यूनिकेशन रिसर्च सेन्टर (Telecommunication Research Centre) के फाउन्डर डायरेक्टर (Founder Director) हुए और इसी पद से दिसम्बर, 1976 में सेवानिवृत्त हुए। यह परमात्मा का विधान ही था कि 1946 में जब आप सेन्ट्रल टेलीग्राफ ऑफिस, कलकत्ता (C.T.O., Calcutta) ESA – Electrical Supervisor (Maintenance) पद पर कार्यरत थे तब वहां पर 16 अगस्त, 1946 को डायरेक्ट एक्शन डे (Direct Action Day) के दिन भयावह वातावरण में नियत समय पर C.T.O. ऑफिस पहुंचे। ऑफिस में हाजिरी बहुत कम थी और थोड़ी देर में टेलीग्रामों में खून-खुरेजी की भयानक खबरें आने के कारण आपके बदन के रोंगटे खड़े हो गये। आप दो दिनों तक लगातार दिन-रात जागते रहे और घर तक की खबर न ले सके। आपको मनुष्य की गिरावट, मनुष्य की चरित्र हीनता एवं मनुष्य जीवन के ध्येय आदि के विषय में अनेकों विचार आने लगे। जीवन यात्रा के घटाटोप अन्धकार में आपके मन में प्रश्न उठे-मैं किधर जाऊँ? यही प्रश्न जैसा कि नचिकेता और मैत्रेयी के हृदय में उठा, वैसा प्रश्न आपके हृदय में उठा। आपकी सच्ची उत्कट जिज्ञासा के फलस्वरूप परमात्मा की कृपा से परम सन्त महात्मा श्री बृजमोहन लाल जी का सान्निध्य आपको पूज्य चाचा श्री मोहन लाल जी के द्वारा प्राप्त हुआ। परम सन्त महात्मा श्री बृजमोहन लाल जी महाराज के द्वारा आपको विजयादशमी के दिन सन्‌ 1948 को उपदेश की प्राप्ति हुई और बारह दिनों के अन्तर्गत ही अनेकों उत्कृष्ट आध्यात्मिक अनुभव हुए। आपके सद्‌गुरुदेव जी ने आपको पत्र लिखा-“क्या पता कि परमात्मा तुम्हारे रूप में ही वह बालक मुझे दे रहा है जिसके विषय में मेरे सद्‌गुरुदेव परम सन्त महात्मा श्री रामचन्द्र जी महाराज ने फरमाया था कि एक ऐसा प्रेमी तुम्हें मिलेगा जो हमारा सबका नाम ऊँचा कर देगा। परमात्मा से प्रार्थना है कि वह अपना सच्चा प्रेम व ज्ञान-प्रकाश प्रदान करें।“ पूज्य सद्‌गुरुदेव परम सन्त महात्मा श्री यशपाल जी वर्तमान काल के उन महानतम संतों में से थे। जिन्होने आत्म साक्षात्कार की दिव्य स्थिति को प्राप्त कर गृहस्थ जीवन यापन करते हुए ‘‘प्रवृत्ति में निवृत्ति' का अनुपम आदर्श अर्थात्‌-दस्त ब का़र, दिल ब यार प्रस्तुत किया। आपने अपने आध्यात्मिक अनुभवों के आधार पर कई अमूल्य कृतियों का सृजन किया। जिसमें-श्री बृजमोहन वचनामृत, (पांच भागों में)आनन्द योग, इति मार्ग की साधना पद्धति, गीता सुधा, अष्टावक्र गीतामृत आदि प्रमुख हैं। आनन्द योग की अवधारणा को स्पष्टता एवं व्यवहारिकता प्रदान करते हुए आनन्द योग, इति मार्ग की सम्पूर्ण साधना को आठ-आठ घण्टों के तीन सोपानों (Steps) में विभाजित कर 24 घण्टों के अभ्यास का निरूपण किया जो एक सहज, सरल एवं सशक्त साधना प्रणाली के रूप में देश विदेश में विख्यात है। परमात्मा की अनुकम्पा के फलस्वरूप आपने परम्परागत अष्टावक्र प्रदत्त ब्रह्म-विद्या का जनमानस में प्रचार व प्रसार हेतु 1969 में ‘अखिल भारतीय सन्तमत सत्संग ' की स्थापना की। आपके जीवन पर्यन्त अथक प्रयास से सम्पूर्ण देश एवं विदेशों में भी इस ब्रह्म-विद्या का प्रचार-प्रसार आनन्द योग की साधना के रूप में हो रहा है जिसके प्रकाश में असंख्य जिज्ञासुओं को अध्यात्म-पथ पर सतत्‌ गतिशील होने की प्रेरणा मिल रही है। आपके जीवन ने विदेह की भाँति जल-कमलवत निष्काम कर्म योग का एक अनुपम प्रतिमान स्थापित कर दिया है जो एक प्रकाश स्तम्भ के रूप में युग-युग तक मानवता का पथ-प्रदर्शन करते हुए आत्म साक्षात्कार का पथ प्रशस्त करता रहेगा। परम सन्त महात्मा श्री यशपाल जी (पूज्य भाई साहब जी) की भौतिक व आध्यात्मिक उपलब्धियों का विवरण तब तक पूर्ण नहीं होगा जब तक कि आपकी सहधर्मिणी श्रीमती रूपवती देवी (आराध्या पूज्या माता जी) के उदात्त व्यक्तित्व पर प्रकाश न डाला जाये। करुणा, त्याग एवं सेवा की पर्याय पूज्या माता जी छाया की भान्ति पूज्य भाई साहब जी के साथ मिलकर कदम ब कदम सत्संग के विकास व सत्संग परिवार की देख रेख में अहर्निश संलग्न रहीं। पूज्य भाई साहब जी ने जीवन पर्यन्त भौतिक शरीर में रह कर अप्रैल सन्‌ 2000 तक सेवा की तत्पश्चात्‌ परम पूज्या माता जी (परम सन्त श्रीमती रूपवती देवी जी) सत्संग के कार्य भार सतत्‌ निर्वाहन करते हुए, नवम्बर 2011 में समाधिस्थ हो गई। आप सब परम पिता परमात्मा से एकाकार होकर विश्व को आलोकित कर रहे हैं। ‘‘रोशन किये हैं, आपने अध्यात्म के घर घर चिराग । विश्व में फैला रहे सत्यज्ञान का अनुपम प्रकाश ।।'