Vrajesh Shashikant Dave stories download free PDF

अंतर्निहित - 12

by Vrajesh Shashikant Dave
  • 120

[12]“देश की सीमा पर यह जो घटना घटी है वह वास्तव में तो आज कल नहीं घटी है।”“क्या मतलब ...

अंतर्निहित - 11

by Vrajesh Shashikant Dave
  • 537

[11]रात्री के भोजन के उपरांत सारा सोने के लिए सज्ज हो रही थी तभी उसके द्वार को किसी ने ...

अंतर्निहित - 10

by Vrajesh Shashikant Dave
  • 1.1k

[10]प्रात: होते ही सारा खुली हवा में कुछ समय तक घूमने चली गई। प्रभात की वेला में उसे भारत ...

अंतर्निहित - 9

by Vrajesh Shashikant Dave
  • 513

[9]येला गंगटोक लौटने की तैयारी कर रही थी तब उसने समाचार में देखा कि किसी एक नगर में पुलिसवालों ...

अंतर्निहित - 8

by Vrajesh Shashikant Dave
  • 693

[8]सारा ने द्वार बंद कर दिया, गवाक्ष को खोल दिया। एक मंद समीर ने भीतर प्रवेश कर लिया और ...

अंतर्निहित - 7

by Vrajesh Shashikant Dave
  • 996

[7]शैल ने कुछ समय विचार किया। मन में योजना बनाई पश्चात उसने फोन लगाया।“महाशय, मुझे किसी पारिवारिक कार्य से ...

अंतर्निहित - 6

by Vrajesh Shashikant Dave
  • 870

[6]मृतदेह मिलने की घटना को तीन दिन हो गए। शैल ने अपने अन्वेषण के सभी पक्षों से प्रयास किया ...

अंतर्निहित - 5

by Vrajesh Shashikant Dave
  • 969

[5]येला ने दस निमिष कहा था किन्तु उससे भी पाँच निमिष पूर्व प्रार्थना कक्ष भर गया। सभी के मन ...

अंतर्निहित - 4

by Vrajesh Shashikant Dave
  • 1.2k

[4]सिक्किम के किसी अज्ञात पर्वत पर स्थित शिल्प शाला-“येला, तुमने आज के समाचार देखे?”“इतना समय ये पत्थर कहाँ देते ...

अंतर्निहित - 3

by Vrajesh Shashikant Dave
  • (5/5)
  • 990

[3]शैल उस स्थल का, उस क्षेत्र का अपने दृष्टिकोण से निरीक्षण करने लगा। उसने जो भी देखा, जो भी ...