16.भक्ति की विशेषताअन्यकमात् कौलभ्यं भक्तौ ॥५८॥अर्थ : अन्य की अपेक्षा भक्ति सुलभ है ।।५८।।परम भक्त नारदमुनि ही नहीं अन्य ...
15.भक्ति के भेदगौणी विधा गुणभेदादार्तादिभेदाद्वा ॥५६॥उत्तरस्मादुत्तरस्मात्पूर्वपूर्वा श्रेयाय भवति ॥ ५७।।अर्थ : गौणी भक्ति गुण भेद से तथा आर्तादि भेद ...
14.प्रेम का स्वरूप और पात्रताअनिर्वचनीयं प्रेमस्वरूपम् ||५१||मुकास्वादनवत्॥५२||अर्थ : प्रेम का वह स्वरूप अवर्णनीय, अकल्पनीय, अतुलनीय है।।५१।। गूँगे के स्वाद ...
13.कर्म फल का त्यागयः कर्मफलं त्यजति, कर्माणि संन्यस्यति, ततो निद्वंद्वो भवति॥४८॥अर्थ : जो कर्म फल का त्याग करता है, ...
12.विकारों से बचावकस्तरति कस्तरति मयाम् ? यः संगांस्त्यजति, यो महानुभावं सेवते, निर्ममो भवति॥४६॥अर्थ : कौन तरता है, कौन तरता ...
11.विकारों का प्रभावकामक्रोध मोहस्मृतिभ्रंश बुध्दिनाशसर्वनाश कारणत्वात् ||४४||अर्थ : काम, क्रोध, मोह, स्मृतिभ्रंश, बुद्धिनाश ये सर्वनाश का कारण है।।४४||पिछले कुछ ...
10.सत्य संघ का प्रभावमुख्यतस्तु महत्कृपयैव भगवत्कृपालेशाद्वा ||३८||अर्थ : मुख्यतया महापुरुषों की कृपा से या भगवत् कृपा के लेश मात्र ...
9.श्रवण, कीर्तन, भजन से भक्ति में बढ़ोत्तरीअव्यावृत भजनात् ||३६||अर्थ : (अथवा) अखंड भजन से ।। ३६ ।।नारदजी भक्ति बढ़ाने ...
8.भक्ति बढ़ाने के साधनतस्याः साधनानि गायंताचार्याः ||३४||अर्थ : उस (भक्ति) को प्राप्त करने के साधन बताते हैं ।। ३४।।जैसा ...
7.भक्ति का स्वादिष्ट फलराजगृहभोजनादिषु तथैव दृष्टत्वात्॥ ३१ ॥न तेन राजपरितोषः क्षुधाशांतिर्वा ||३२||अर्थ : राजगृहों में भोजन के समय ऐसा ...